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स्त्री - लेखनी प्रतियोगिता -25-Sep-2023

स्त्री 

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विश्वास किसी और पर!
मार किसी और की, 
सहती रहती है सदैव स्त्री. 
किसी उम्मीद पर,
जीती रहती है स्त्री.

होंठों पर होती हैं दुआएं, 
पर साथ ही रहतीं हैं आहें, 
जो निकलतीं हैं उसके होंठों से, 
वे दुआएं होतीं हैं,
जिन्हें वह प्यार करती है।  

आहें होतीं हैं उनके कारण,
जिनके खूँटे से,
उसे बांध दिया जाता है,
समाज के नियमों के चलते। 

एक ही समय में दो बार,
जीती मरती है स्त्री।  
गम के घूंट पीती रहती है स्त्री। 

उफ किए बगैर उस के साथ,
रह लेती है स्त्री, 
जिसके साथ आज तक,
उसने कभी प्यार नहीं किया।  

जिसकी उसने मार तो सही है, 
मगर जिस पर उसने कभी,
 विश्वास नहीं किया।
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शोभा शर्मा , छतरपुर से 
 

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3 Comments

Reena yadav

26-Sep-2023 11:04 AM

👍👍

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बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Gunjan Kamal

25-Sep-2023 07:44 AM

बहुत खूब

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